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दिल्लगी से मैंने छुए और - हाथ में आये तो दास्तां बन गए.

यह पोस्ट मिटा दी गयी है

2 टिप्पणियाँ:

दीपक बाबा ने कहा…

अब का गाली दें आपको - पर एक बात है अच्छे कि कुर्सी हिला दोगे आप अब लग रहा है. कृपया मेरी कविता के साथ मेरा लिंक दे दें. हाँ एक बात का सकूं होता है कि मेरी कविता आपने जस कि तस छाप दी. शुक्र है - कविता के साथ छेड़-छाड़ नहीं की. मन में ये भय इसलिए है कि बंटी गाडी चुरा तो सकता है - पर चला नहीं सकता. पहले कविता को समझो.......... ये तो बता दो अच्छी लगी कि नहीं.

Arshad Ali ने कहा…

banti sahab mere ghar kab chori karne aaoge..kayonki aapne hin sabse uper likha hay
यहाँ पर आपको बहुत से अच्छे लेखको का माल मिलेगा ...agar mera maal bhi yahan mil jaaye to mai achchhe lekhakon me shamil ho jaaunga..

baki aapki marzi..aaj nahi to kal mere paas bhi chori ho jane laayak maal jama ho hin jayenge.aap kab tak mujhe nazar andaz karoge.

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मोहताज ही जाती है ...
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कोई आपत्ति हो तो ..
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6. Modration लगाने का फैसला आप के द्वारा किये गए कमेन्ट
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